समीक्षा

बोधकथाओं में व्यापक जीवन दृष्टि

 

लीक-लीक गाड़ी चलै, लीकहि चलै कपूत।

लीक छाँड़ि के तीनों चलैं, सायर सिंह सपूत।।

श्री शिव नारायण सिंह की कहानियों के संग्रह छह खंडों में मेरे सामने हैं। जब मैं देखता हूँ तब मेरे सामने रचयिता, उनके द्वारा रचित प्रेस्टिज इंटर कॉलेज भी सामने खड़ा हो जाता है। आमतौर पर साहित्यकार निर्माण कार्य नहीं करते और निर्माणकर्ता साहित्य का भ्रम ही पाले मिलेंगे, किंतु यहाँ जैसा साहित्य और निर्माण दोनों का मणिकांचन संयोग कम ही मिलेगा।

उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः,

दैवेन देयमिति कापुरुषाः वदन्ति।

दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या,

यत्ने कृते यदि न सिद्धयति को।़त्र दोषः।।

मेरी समझ से श्री शिव नारायण सिंहजी में साहित्य और निर्माण का मणिकांचन संयोग कूट-कूटकर भरा है। सर सैयद अहमद खाँ ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय तथा मालवीयजी ने काशी विश्वविद्यालय बनवाया और पूरा-पूरा जन सहयोग लिया, लोगों ने दिया भी, लेकिन देवरिया के इस आधुनिक मालवीय ने बिना एक पैसा चंदा लिए देवरिया का सबसे मशहूर प्रेस्टिज इंटर कॉलेज केवल अपने पुरुषार्थ से बिना किसी के आगे हाथ पसारे खड़ा किया, यह इनके पुरुषार्थ की निशानी है। जैसा कि इस कॉलेज के नाम से ही स्पष्ट है कि इस कॉलेज ने ट्यूशन से प्रारंभ कर ट्यूटोरियल क्लासेज चलाकर उससे पैसे अर्जित कर एक पाई भी अनावश्यक खर्च न कर विद्यालय के निर्माण में लगाई और यह देवरिया का सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज है, जहाँ प्रवेश पाने के लिए छात्र लालायित रहते हैं। यह श्री सिंह की निर्माण क्षमता का शाश्वत स्वरूप है।

भारतीय साहित्य में तमाम कहानियाँ भरी पड़ी हैं। संस्कृत साहित्य में शिक्षाप्रद कहानियों में ‘पंचतंत्र’ प्रसिद्ध है, जो राजा के बुद्धिहीन राजकुमारों को शिक्षित करने के लिए लिखा गया है। तमाम पौराणिक कथाएँ कथा साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। हिंदी में देवकी नंदन खत्री के उपन्यास, प्रेमचंद की कहानियाँ, भोजपुरी में किस्सा तोता-मैना, रानी सारंगा और सदावृक्ष की कहानियाँ, सोरठी बृजा भार और तमाम नानी-दादी की कहानियाँ मौजूद हैं।

उनमें एक से एक उपमा, साहित्य की अनेक विधाएँ मौजूद हैं। कहा भी गया है कि—

उपमा कालिदासस्य, भारवे।़र्थ गौरवम्।

दण्डिना पदलालित्यम् माघे सन्तित्रयो गुणाः।।

कविता में तो ये सारे गुण हैं, पर गद्य में ये सारे गुण लाना कठिन है। कहा गया है—

गद्य कवीनां निकषं वदन्ति।

गद्य में ये सारे गुण और खासकर कहानी में लाना विशेष प्रतिभा की आवश्यकता होती है। ये सारे गुण भी शिव नारायण सिंह की ‘विद्यार्थियों से...’ कहानी-संग्रहों में कूट-कूटकर भरे हैं। इतनी अधिक कहानियाँ कहने के बाद भी श्री शिव नारायण सिंह कहीं भी भारत, भारतीयता और भारतीय संस्कृति का उल्लंघन करते नहीं दिखते। प्रथम खंड की छोटी-छोटी कहानियों से शुरू कर छठे खंड की बड़ी-बड़ी कहानियों तक पहुँचते हैं।

प्रथम खंड के आत्मविश्वास, समयाभाव, बाधाएँ, अन्याय का विरोध, पुरस्कार, त्याग, दोहरा चरित्र और सद्बुद्धि जैसी सुरुचिपूर्ण और छोटी कहानियाँ हैं।

दूसरे खंड में क्रमशः बड़ी और गंभीर कहानियाँ हैं, यथा मन के जीते जीत, सत्कर्म, संघर्ष, संतुष्टि, मर्यादा, ये छोटी भी हैं और गंभीर भी।

तीसरे खंड में कहानियों का आकार कुछ बढ़ा भी है और गंभीरता भी बढ़ी है; जैसे दृष्टिकोण, अंतःप्रेरणा, प्रार्थना का प्रभाव, वाणी, फल, चाह, होशो-हवास, लघुता से प्रभुता, सावधानी।

चौथे खंड में कहानियों का आकार और बढ़ा है। विषय भी गंभीर हुए हैं। यथा—संघे शक्ति..., मृगतृष्णा, थोड़े का महत्त्व, कठिनाइयाँ अपनी-अपनी उपयोगिता, प्रवृत्तियाँ, अपनों की परिभाषा, स्वमूल्यांकन, प्रेजेंस ऑफ माइंड, योग, मैं कौन हूँ, मन का चोर।

पाँचवें खंड में कहानियाँ और बढ़ी हैं, भावभूमि भी बढ़ा है। जैसे ओवर कॉन्फिडेंस, महिमा सात की, छोटी सी कमी, कर्म में अकर्म, दिग्भ्रमित, आखिरी मंजिल, मान- सम्मान, वर्तमान, मंत्र, स्वपरीक्षण, पाप का भागी, कुंभ मेला, कूपमंडूकता, एकाकार, कमल का बीज, सुख-दुःख है।

छठे खंड की कहानियों का भावभूमि ऊँचा उठा है, उनका आकार भी बढ़ा है और भावनात्मक विषयों पर कहानियाँ कही गई हैं।

‘सुख की अनुभूति’ कहानी सीधी-सादी पर स्पष्ट है। बिना दुःख की अनुभूति के सुख की अनुभूति नहीं होगी। बिना खोए पाने का आनंद नहीं मिलता। यह कहानी इस सिद्धांत पर आधारित है कि बिना विरोधी के अस्तित्व के किसी का कोई महत्त्व नहीं है। अँधेरा न हो तो प्रकाश का महत्त्व नहीं है और मूर्ख न हो तो विद्वान् का अस्तित्व नहीं है। उसी तरह दुःख नहीं तो सुख का कोई महत्त्व नहीं है।

छठी इंद्रिय, पाँच कर्मेंद्रियाँ और पाँच ज्ञानेंद्रियों के रहते हुए भी जब तक आत्मशक्ति, जिसे कथाकार छठी इंद्रिय कहता है जाग्रत् नहीं तो मनुष्य कोई सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। यहाँ छठी इंद्रिय जाग्रत् करने का उपदेश कथाकार छात्रों को देना चाहता है।

‘जीवन’ बोधकथा में कथाकार गौतम बुद्ध के माध्यम से, साथ क्या है, धर्म क्या है, ज्ञान क्या है, जीवन क्या है, इस जीवन का प्रयोजन क्या है और इसकी प्राप्ति का सरल रास्ता क्या है? इसे बड़े ही तार्किक ढंग से बुद्ध की वाणी से समझाता है। इतनी स्पष्टता से इन गूढ़ विषयों को समझाने की क्षमता इस कथाकार ने प्राप्त की है। इसे अद्भुत ही कहा जाएगा।

भुलक्कड़ की यह सीख कि अंतिम परिणाम पर जाकर यत्नपूर्वक प्रश्न हल करें, वरना वही गलती करेंगे, जो गणित का वह प्रोफेसर करता था। सारी योग्यता रहते हुए भी वह अंतिम परिणाम की जानकारी के कारण अपने लक्ष्य से भटक जाता था।

कथाकार संत-कथाएँ कहने के बाद भी किसी पुरानी कथा का परिपालन नहीं करता। उसने अपनी एक नई राह चुनी है, वह राह इतनी अनोखी है कि सारी पुरानी कथा शैलियों को पीछे छोड़ देती है और किसी का पीछा नहीं करती। अपनी राह खुद चुनती है और सफलतापूर्वक अपने छात्रों को सीधी-सरल एवं सटीक भाषा में शिक्षाप्रद तथा आकर्षक अनुभूतियों से साक्षात्कार करा देती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि कथाकार एक नई शैली का आधुनिक हितोपदेश की रचना करता हुआ दिखता है, जिसकी तुलना के लिए मेरे सामने कोई उदाहरण नहीं है।

मेरी समझ से इस कथाकार ने शून्य से अंतिम शून्यांक तक निर्माण और रचना धर्म को अंतिम चरण की ओर अग्रसर किया है। आगे क्या और कितना करता है यह भविष्य के गर्भ में है। फिर भी मुझे नहीं लगता कि किसी विषय को छोड़ा हो और किन-किन विषयों को अभी आगे अपने आनेवाले खंडों में सहेजेंगे, यह मैं या कोई भी कैसे कह सकता है। इतना जरूर कहना होगा कि ‘विद्यार्थियों से...’ के छह खंड ही अबोध बच्चों को पूर्ण मनुष्य बनाने के लिए पर्याप्त हैं। मुझे इन पुस्तकों में एक ऐसा व्यापक जीवन दृष्टिगोचर होता है, जो मेरे मन-मस्तिष्क को मथकर रख देता है, शायद ऐसा ही अन्य श्रोता अथवा पाठकों के साथ भी हुआ होगा। निश्चित ही वह दिन दूर नहीं, जब इस देश के नौनिहाल पुनः अपने देश को सारे संसार में प्रतिष्ठित करके अपनी योग्यता का लोहा मनवा लेंगे कि हम जगद्गुरु हैं और रहेंगे। मेरी शुभकामना है कि शिव नारायण सिंह निर्माण और रचना दोनों ही धर्मों में अंतिम बिंदु तक पहुँचें।

अवसाधाना वित्ता हीना बुद्धिमत्ता सुहृत्तमा।

साध्यान्त्याशु कार्यणि, शिवनारायण कृतोयथा।

 


मूल्यों के निर्माण कलश - Nov, 17 2025