बोधकथा

श्रमशील

  प्रिय विद्यार्थियों, एक सुन्दर बगीचा। उस बगीचे में एक मधुमक्खी और एक तितली थोड़ी ही दूरी पर रहा करती थीं । थोड़े ही फासले पर रहती थीं वे दोनों। नित्य प्रति की एक ही बात थी। सुबह से ही मधुमक्खी अपने काम में लग जाया करती थी, तितली भी उसके आस-पास ही अपनी दिनचर्या पूरी करती।

       एक दिन तितली से रहा नहीं गया, उसने मधुमक्खी से कहा- बहन, तुम रोज मुझसे पहले ही निकल जाया करती हो और मेरे बाद तक लगी रहती हो, आखिर तुम यह करती क्या हो?

       मधुमक्खी ने कहा- मैं ऐसा कुछ नहीं करती, तुम तो जानती ही हो, मेरा काम क्या है? मैं फूलों से मकरंद लेती हूँ और उससे मधु तैयार करती हूँ।

       तितली बड़ी ज़ोर से हँसती है और कहती है- तुम इन फूलों से मकरंद लेकर मधु तैयार करती हो! अरे, इन छोटे-छोटे फूलों में कहाँ मकरंद है जो तुम मधु तैयार करोगी? मुझे तो लगता है कि तुम अपना समय और श्रम दोनों ही व्यर्थ में गँवा रही हो। मेरी बात मानो, क्यों न हम लोग चलकर कहीं बहुत बड़े मधु के तालाब की खोज करें?

       तितली फिर कहती है मधुमक्खी से- क्यों न हम लोग चलकर कहीं बहुत बड़े मधु के तालाब की खोज करें?

       मधुमक्खी तितली की बात सुनती है और फिर अपने काम में जुट जाती है, लगी रहती है।

       तितली को लगा- मधुमक्खी मेरी बात पर ध्यान नहीं दे रही है लेकिन मुझे तो कुछ ऐसा ही करना चाहिए।

       तितली निकल जाती है, मधु के तालाब की खोज में। सुबह से शाम तक मधु के तालाब की खोज करने के बाद रात में लौटती है। इधर मधुमक्खी अपने काम में लगी रहती है, वह भी रात में लौटती है।

     प्रिय विद्यार्थियों, क्या तितली को मधु का तालाब मिला होगा? तितली खाली हाथ लौटती है और मधुमक्खी अपना काम पूरा करके,  मधु का संचय करके लौटती है। मधुमक्खी का काम आप जानते ही हैं, तितली आपने देखी ही है, बताने की ज़रूरत नहीं है।

       लेकिन एक बात ज़रूर बताने की है, शायद आपने इसे महसूस किया हो, न भी किया हो; तितली और मधुमक्खी दोनों के साथ परिवेश एक ही है, परिस्थितियाँ एक ही हैं। जैसी परिस्थितियाँ और परिवेश मधुमक्खी को मिली हैं, ठीक वही परिस्थितियाँ और परिवेश तितली को भी मिली हैं, लेकिन दोनों के जीवनयापन में, दोनों के क्रियाकलाप में और दोनों की उपलब्धियों में ज़मीन-आसमान का अन्तर है।

       आखिर ऐसा क्यों है? इसके पीछे कहीं-न-कहीं मधुमक्खी का अपना दृष्टिकोण है और तितली का अपना। मधुमक्खी श्रमशील है, श्रम में उसका विश्वास है, हर क्षण वह मेहनत करती है और तितली पलायनवादी है, उसे श्रम का ज्ञान नहीं है, न ही कोई भान है, उसे अपने भविष्य की भी कोई चिंता नहीं है और न ही वह उस बारे में सोच पा रही है।

       आप जितने लोग यहाँ आते हैं, सभी को परिस्थितियाँ एक जैसी ही मिली हैं, कहीं किसी के साथ कोई पार्शिआलिटी होती है क्या? ऐसा तो है नहीं कि जो पढ़ने में अच्छा है उसे ज़्यादा पढ़ाया जाता है और जो अच्छा नहीं है, उसे कम पढ़ाया जाता है। जब सभी के साथ एक ही तरह की परिस्थितियाँ हैं, एक ही स्थिति है, सब कुछ एक ही जैसा है फिर रिजल्ट आने पर अन्तर क्यों हो जाता है? कभी सोचा आपने? नहीं सोचा तो अब सोच लीजिए, आज ही सोच लीजिए, ज़रूर सोच लीजिए।                                      

     प्रिय विद्यार्थियों, जो मधुमक्खी की तरह श्रमशील हैं, जिसने अपने भविष्य की चिंता की है या यूँ कहिए जो कुछ कर गुज़रना चाहते हैं, उनका रिजल्ट बेहतर होता है और जो तितली-सा जीवनयापन करते हैं, जिन्हें बस उसी क्षण की चिंता रहती है या यूँ कहिए कि बिना कुछ किये ही मधु का तालाब पाना चाहते हैं, तो उन्हें मधु का तालाब कहाँ मिलेगा!

      ठीक यही बात है आपके साथ भी, आपके साथ भी ऐसा ही है, बिना मेहनत किये, बिना परिश्रम किये, बिना कोशिश किये अगर आप रिजल्ट चाहेंगे तो यह मिथ्या है, इसका कोई मतलब नहीं है, व्यर्थ है, समय बर्बाद करना है। लेकिन जब लग जाते हैं, लगे रहते हैं, और अपने अन्दर कुछ कर गुज़रने की तमन्ना रखते हैं तो निश्चित रूप से आप बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं, कुछ उपलब्धि, कुछ आदर्श, कुछ दिशा, कुछ मार्ग आप अपने बाद वालों के लिए भी छोड़ सकते हैं।

       मेरी बातें आपको बहुत हल्की लग रही हैं। तितली और मधुमक्खी! आपको लगता होगा कि ये हमारे सामने क्या हैं, हमारे सामने इनका कोई महत्व नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। अगर आप इनसे भी सीखने की कोशिश करें, तो निश्चित रूप से आपको आपका लक्ष्य मिल सकता है, आपको आपका लक्ष्य मिलना ही है।

आप इस दिशा में लगे हैं, लगे रहेंगे, आप सफल हो रहे हैं, आप सफल होते रहेंगे, आप सफल हों।

                                                                                                                   धन्यवाद


खंड दो - Oct, 16 2025