बोधकथा

मनोबल

       प्रिय विद्यार्थियों, एक छोटे-से राज्य पर किसी बड़े राज्य के राजा ने आक्रमण कर दिया। अब इस छोटे से राज्य का सेनापति, जिसके पास सैन्य बल बहुत कम था, घबरा जाता है और जाकर अपने राजा से कहता है- अगर हम लोग लड़ाई लड़ेंगे तो किसी भी स्थिति में जीत नहीं पाएंगे; क्योंकि शत्रु की सेना हमारी सेना से पाँच गुनी है और इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि हम लोग हथियार डाल दें, हार स्वीकार कर लें।

       राजपुरोहित वहीं खड़ा रहता है। सेनापति की बातें सुनकर राजा राजपुरोहित की ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखते हैं। राजा जानना चाहते हैं कि राजपुरोहित की मंशा क्या है ?

      राजपुरोहित ने राजा से कहा- नहीं, हम लोग हथियार नहीं डालेंगे। लड़ाई लड़ी जाएगी परिणाम चाहे जो हो देखा जाएगा।

       सेनापति तो हार मान ही चुका था, वह लड़ाई लड़ने के लिए तैयार नहीं था। अब     राजा के लिए समस्या हुई कि इस स्थिति में सेना का संचालन कौन करेगा?

       राजा ने राजपुरोहित से फिर कहा- यह कोई आसान काम नहीं है। आप जो कह रहे हैं, उसका मतलब भी समझ रहे हैं? सेनापति तो सैन्य संचालन में सक्षम नहीं है, आखिर कौन सेनापति बनेगा जो इस लड़ाई को जीतेगा? मुझे तो कोई भी इस काबिल समझ में भी नहीं आ रहा है।

       यह सुनकर राजपुरोहित ने कहा- ठीक है, मैं ही सेनापति बन जाता हूँ, मुझे ही यह दायित्व सौंप दीजिए, मैं ही सेना का संचालन करूँगा।

       राजा को एकाएक उसकी बात पर विश्वास ही नहीं होता है। राजा को लगता है कि यह तो और भी कठिन स्थिति उत्पन्न कर देगा। लेकिन करता भी क्या? उसके पास कोई विकल्प भी तो नहीं है।

       राजा ने राजपुरोहित की बात मान ली। अब राजपुरोहित सेनापति नियुक्त हो गया और तुरन्त लड़ाई के लिए कूच कर गया।

       राजपुरोहित सेनापति है, सेना को लेकर आगे बढ़ रहा है। रास्ते में एक मन्दिर पड़ता है।

      राजपुरोहित अपने सैनिकों से कहता है- आओ, इस मन्दिर के देवता से पूछ लिया जाए कि लड़ाई में कौन जीतेगा और अगर देवता कहेंगे कि लड़ाई हम जीत जायेंगे तो हम लोग आगे बढ़ेंगे, नहीं तो फिर कोई और रास्ता ढूंढ़ा जाएगा।

       सैनिकों ने कहा- आप तो मन्दिर के अन्दर चले जायेंगे, अकेले में देवता से पता नहीं क्या-क्या बात करेंगे, वे जीतने की बात कहें या हारने की बात कहें, आप आकर हम लोगों से कुछ भी कह सकते हैं। आप यह बात हम लोगों के सामने ही पूछिए, तभी हम मानेंगे।

       राजपुरोहित के पास अब इसका कोई जवाब नहीं था। उसने कहा- ठीक है, मैं तुम लोगों के सामने ही पूछ लेता हूँ। उसने अपनी झोली में हाथ डाला, एक सिक्का निकाला और सैनिकों से कहा- देखो, यह सिक्का है, मैं इसे उछालता हूँ, अगर चित्त आता है, तो जीत हमारी होगी और अगर पट आता है, तो हम लोग वापस लौट चलेंगे।

       सिक्का उछाला गया, सिक्का चित्त ही गिरता है। पुरोहित ने क्या कहा था ? सिक्का अगर चित्त गिरेगा तो हम जीत जायेंगे। अब सैनिकों का उत्साह जाग जाता है। सैनिक उत्साहित हैं। सैनिक कहते हैं- ठीक है, एक बार और उछालिए, देखिए, इस बार क्या होता है।

        सिक्का पुनः उछाला जाता है, इस बार फिर चित्त ही गिरता है। सिक्का दूसरी बार भी चित्त ही गिरा। सैनिक और उत्साहित होते हैं, लेकिन उनका मन अभी भी पूर्ण आश्वस्त नहीं है।

       सैनिक कहते हैं- अच्छा ठीक है, तीसरी बार उछालिए। इस बार जो होगा वही किया जाएगा।

       सिक्का पुनः उछाला जाता है, तीसरी बार भी वह चित्त ही गिरता है। अब उनके उत्साह की सीमा नहीं है।

       सभी सैनिक पूरे उत्साह से 'जीत-जीत-जीत' चिल्लाने लगते हैं। बस उसी क्षण वे कूच कर जाते हैं और विपक्षी राजा को जो पाँच गुनी सेना होती है उसका मर्दन कर देते हैं, उसे तहस-नहस कर, जीतकर लौट आते हैं।

       अब बारी आती है इनके अभिनन्दन की। जब राजपुरोहित का अभिनन्दन होता है जीते हुए सेनापति के रूप में, तब सैनिक कहते हैं- जीत तो उस मन्दिर के देवता की कृपा है और आप राजपुरोहित है, इसी का आपने लाभ ले लिया, नहीं तो यह कार्य आपके वश का नहीं था।

       अभिनन्दन के क्रम में राजपुरोहित कहता है- यह न तो देवता की कृपा है और न ही मेरी किसी विशेष सैन्य कुशलता का परिणाम। यह तो केवल और केवल तुम्हारे मनोबल की ही बात है।

       सैनिक कहते हैं- वह कैसे ?

       पुरोहित फिर वही सिक्का निकालता है अपनी झोली से और उन सैनिकों को दिखाता है। उसे उलटता-पलटता है, सिक्के की ढलाई ऐसी हुई होती है कि दोनों ओर चित्त का ही निशान होता है। सिक्का चाहे जितनी बार उछाला जाएगा हर बार चित्त ही आएगा। पट कहाँ से आएगा? पट तो उस सिक्के में था ही नहीं।

       अब बताइए जीत किसकी हुई ? एक मनोवैज्ञानिक तरीका जो उस राजपुरोहित ने अपने सैनिकों को उत्साहित करने के लिए प्रयोग में लाया। उसने एक ऐसे सिक्के का उपयोग किया जिसके दोनों ओर चित्त का निशान था। सैनिक तो यह बात जानते नहीं थे। सिक्का जब भी उछाला जाता परिणाम उनके मनोनुकूल आता कि जीत हमारी ही होनी है। वे उत्साहित हुए, उनका मनोबल बढ़ा और उन्होंने जीत हासिल कर ली।

       प्रिय विद्यार्थियों, जब भी कोई पुरुष महापुरुष बना है, महामानव बना है, तो जरूर उसके पीछे यही बात रही है कि किसी-न-किसी रूप में, किसी-न-किसी कॉर्नर से, किसी-न-किसी विधा से, किसी-न-किसी कारण से वह प्रभावित हुआ और उसका मनोबल, जो सोया हुआ था, जाग गया और वह महापुरुष बन गया, महामानव बन गया। जिसका भी आत्मविश्वास सोया हुआ है, जिसका भी मनोबल जागृत नहीं है, वह कभी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता है।

       आप लाख लक्ष्य बनाइए, लाख मानक तय कीजिए लेकिन जब तक आपका मनोबल सुसुप्त अवस्था में रहेगा, आपको विजय नहीं प्राप्त होनी है। आप केवल एक लक्ष्य बनाइए, दृढ़-निश्चय कीजिए और अपने मनोबल को जगाइए कि यह रिजल्ट मुझे मिलना ही है या अमुक चीज मुझे कर ही डालनी है। मै ऐसा करके ही मानूँगा, चाहे इसके लिए मुझे कोई भी कीमत चुकानी क्यों न पड़े। निश्चित ही आप देखेंगे कि रिजल्ट आपके पक्ष में होगा। 

       प्रिय विद्यार्थियों, आज ही लिखकर रख लीजिए कि आपको क्या बनना है। आपको जो भी बनना है उसके लिए आप केवल अपने उस सोये हुए मनोबल को, आत्मविश्वास को जगा लीजिए और इसी समय प्रोसेसिंग शुरू कर दीजिए। समय आने पर रिजल्ट आपके पक्ष में ही होगा। आप जो बनना चाहेंगे एकदम बन कर रहेंगे, यह अकाट्य है। इसे आज तक न कभी कोई काट सका है, और न काट सकेगा।

      जब भी, जिसने भी, जो भी निर्णय लिया और अपने आत्मविश्वास को जगा लिया, तय कर लिया, उसे लक्ष्य मिल गया। चाहे कोई भी महापुरुष हो, आप उनकी जीवनी उठाकर पढ़ सकते हैं, देख सकते हैं, जान सकते हैं। उनके महापुरुष बनने के पीछे यही बात है। आप भी महापुरुष बनेंगे, आप भी महापुरुष बनने के लिए ही इस धरती पर आए हैं। लेकिन कब? जब आप अपने सोये हुए आत्मविश्वास को जगा लेंगे और इस प्रक्रिया में आप लगे भी हैं। इसे थोड़ा और ढंग से करेंगे, तो निश्चित रूप से लक्ष्य आपको मिलना-ही-मिलना है।

       आप इस दिशा में लगे हैं, लगे रहेंगे, आप सफल हो रहे हैं, आप सफल होते रहेंगे, आप सफल हों।

                                                                                                                                           धन्यवाद!


खंड तीन - Oct, 17 2025