बोधकथा

ज़रूरत

प्रिय विद्यार्थियों, एक बार की बात है। सन्त कबीरदास अपने शिष्यों को प्रवचन करते समय कह रहे थे- प्रतिदिन सवेरे-सवेरे मेरे पास एक शैतान आता है। शैतान मतलब समझते हैं? प्रेत। तो कबीरदास जी कह रहे हैं कि प्रतिदिन सवेरे-सवेरे मेरे पास एक प्रेत आता है और मुझसे पूछता है- बोलो, आज क्या खाओगे? जीभ से पानी आ गया होगा आप लोगों के, लेकिन यह मैं नहीं पूछ रहा हूँ कि क्या खाओगे, वह प्रेत कबीरदास जी से पूछता है कि बोलो, आज क्या खाओगे?

       कबीरदास जी कहते हैं- मैं जवाब देता हूँ, मिट्टी खाऊँगा।

       प्रेत गुस्सा तो बहुत है लेकिन फिर पूछता है- अच्छा बताओ, आज कौन-सा कपड़ा पहनोगे?

       कबीरदास जी जवाब देते हैं- मुर्दे का कपड़ा अर्थात् कफन। 

       प्रेत और भी क्रोधित होता है, डराता है। फिर पूछता है- अच्छा, यह बताओ, आखिर तुम रहोगे कहाँ?

       मेरा जवाब होता है- श्मशान में।

       वह फिर आग-बबूला हो जाता है, मुझे भला-बुरा कहने लगता है, मुझे ढोंगी कहने लगता है, मुझे अभागा कहने लगता है और चला जाता है।

       फिर दूसरे दिन भी आता है। प्रतिदिन का यही क्रम है उसका। प्रेत पहले समझाता है और जब मैं उसकी बात नहीं मानता तो मुझे भला-बुरा कहता है और चला जाता है। यह बात कबीरदास अपने शिष्यों को बता रहे थे कि एक प्रेत आता है, मुझे प्रलोभन देता है, मुझे अपने जाल में फँसाने की कोशिश करता है और जब उसे लगता है कि मैं उसकी बातों में, उसके जाल में नहीं फँस रहा हूँ तो मुझसे उल्टा-सीधा कहकर चला जाता है।

       प्रिय विद्यार्थियों, अगर वह प्रेत यह बात किसी और से कहता है। वह यह बात आपसे कहता तो क्या आपका भी यही उत्तर होता? और लोगों का यही उत्तर होता? नहीं, कभी ऐसा नहीं हुआ और न ही कभी ऐसा हो पाएगा। यह उत्तर दिया केवल कबीरदास जी ने। प्रेत जिनसे भी ये बातें कहता है सभी उसकी बातों में आ जाते हैं, जो इच्छा होती है माँगते हैं और उसी में फँसकर रह जाते हैं। आज मनुष्य, मनुष्य क्यों नहीं रह गया है? इसके पीछे सिर्फ यही बात है कि आज उसके पास केवल यही तीन प्रश्न हैं और इन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर खोजने में फँसकर वह अपना जीवन व्यर्थ कर देता है। क्या हमारी दौड़ केवल रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सिमट कर नहीं रह गयी है?

       हम कुछ भी बन जाते हैं, हम कोई भी उपलब्धि हासिल कर लेते हैं, हम चाहें जिस ऊँचाई तक पहुँच जाते हैं लेकिन हमारा अन्तिम लक्ष्य केवल वही, प्रेत द्वारा पूछे गये प्रश्नों का जवाब ही होता है कि हमें रोटी की जरूरत है, हमें कपड़े की जरूरत है और फिर मकान की। तो क्या हम इन प्रलोभनों में फँसे नहीं हैं? क्या हम उस प्रेत की बातों में आ नहीं गये हैं? क्या यही हमारे जीवन का उद्देश्य नहीं रह गया है?

       एकदम ऐसा ही हो गया है। यह प्रलोभन है ही ऐसी चीज़। जरा सोचिए, पक्षी जाल में क्यों फँस जाते हैं? मछली अपने गले में काँटा क्यों ले लेती है? मक्खी चाशनी में गिरकर अपनी जीवनलीला समाप्त क्यों कर देती है? इन सबके पीछे भी तो यही है एक क्षणिक लालच, एक छोटा-सा प्रलोभन, एक मामूली-सा उद्देश्य जिसका कोई मतलब नहीं है, लेकिन उसके बदले जीवन देना पड़ता है। 

       प्रिय विद्यार्थियों, मैं आपसे पूछता हूँ। आखिर आप भी इसी दुनिया में हैं, आखिर आपको भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरना है, तो आप क्या सोचते हैं इन प्रश्नों के जवाब में ? आपके अन्दर भी एक हलचल है, आपके अन्दर भी एक द्वन्द्व है, आप भी थोड़े दिग्भ्रमित हैं। आपको भी लालच हो जाता है किन्हीं ऐसी ही महत्वहीन चीज़ों का और आप फिसल जाते हैं, आप अपने को रोक नहीं पाते हैं। यह स्थिति क्षणिक होती है लेकिन परिणाम जीवनपर्यन्त प्रभावित करने वाला होता है। तब आपकी क्या दशा होती है यह बताने की जरूरत नहीं है। यह आप बखूबी देख भी रहे हैं, समझ भी रहे हैं।

       एक दूसरा रास्ता भी है आपके सामने, जो थोड़ा कठिन है। जिसमें थोड़ी परेशानी है, जिसमें चुनौती है और इसलिए आप उससे भागते हैं। वह आपको जटिल लगता है। मेरा आशय आप समझ ही रहे हैं। आपको क्या करना चाहिए? कैसे करना चाहिए? यह समझ तो आपको स्वयं ही डेवलेप करनी होगी। लेकिन कब करेंगे? जब प्रेत आएगा और पूछेगा, क्या खाओगे, क्या पहनना है और आज किस महल में ले चलूँ आपको रहने के लिए? तब सोचेंगे क्या?

       कब सोचेंगे आप? यह समय प्रेत के आने का इन्तजार करने का नहीं है। यह सवाल तो हर क्षण आपके अन्दर उठ रहा है। यह सवाल-जवाब उस प्रेत ने कबीरदास जी से किया था न! आप अपने अन्दर झाँकिए, अपने अन्दर देखिए, विचार कीजिए, सोचिए। यह अन्तर्द्वन्द्व हर क्षण आपके मन में है कि मैं यह करता तो यह हो जाता, वह करता तो वह हो जाता। कभी-कभी तो लगता है बिना किये ही हो जाता। जो यह दो तरह की स्थितियाँ हमेशा बनी रहती हैं, ये दो रास्ते हमेशा आपको दिखाई देते रहते हैं, अब यह आपको तय करना है कि आपको कौन-सा रास्ता चुनना है।

       एक रास्ता प्रेय का, दूसरा श्रेय का; एक रास्ता पतन का, दूसरा उत्थान का; एक पछताने का है, दूसरा गर्व करने का; एक पलायन का, दूसरा चुनौती का; एक समस्या का है और दूसरा समाधान का; एक अनिश्चय का है और दूसरा निश्चय का; एक अदूरदर्शिता का है और दूसरा दूरदर्शिता का; एक असफल होने का है और दूसरा सफल होने का। तय आपको करना है कि आप कौन-सा रास्ता चुनते हैं, तो कौन-सा रास्ता चुनेंगे आप? जो भी रास्ता आप चुनेंगे वह आपको उसी मंजिल तक पहुँचाएगा जहाँ तक उसकी पहुँच होगी। अतः वही रास्ता आप चुनें जो आपको आपकी मंजिल तक पहुँचाए।

       प्रिय विद्यार्थियों, अगर आपको वहाँ पहुँचना है, जहाँ कोई पहुँच नहीं पाया हैं; आपको वह करना है, जो कोई कर नहीं पाया है, आपको वह बनना है, जो अभी तक कोई बन नहीं पाया है, तो निश्चित रूप से आपको रास्ता भी वही चुनना है, जो कोई अभी तक चुन नहीं पाया है।अगर आप वह रास्ता चुनते हैं, तो आप निश्चित ही वह बन जायेंगे जो आपकी चाहत है।

       लेकिन इसके लिए आपको सर्वप्रथम लक्ष्य तय करना होगा, अपने अन्तर्द्वन्द्व को शान्त करना होगा। किसी भी प्रेत के, किसी भी शैतान के, किसी भी बाधा के वश में नहीं होना होगा। आपको अपने वशीभूत होना होगा, आपको अपने वश में होना होगा, आपको अपनी सोच से अपने उद्देश्य की ओर लगना होगा। जिस दिन आप ऐसा सोचेंगे, जिस दिन आप ऐसा करने लगेंगे निश्चित रूप से आप वह सब कुछ कर जाएंगे , जिसके लिए आपका यहाँ आना हुआ है।

       आप इस दिशा में लगे हैं, लगे रहेंगे, आप सफल हो रहे हैं, आप सफल होते रहेंगे, आप सफल हों।

                                                                                                                                                           धन्यवाद।


खंड चार - Oct, 18 2025